वो कान्हा हैं - कविता - स्नेहा

वो प्रेम हैं
वो हैं सखा
वो ही मीत हैं
वो कान्हा हैं।

नटखट हैं वो
माँ का दुलारा
वो मित्र है
सुदामा का प्यारा।

गोकुलवासियों का बंधु वो
बलदेव के वो भ्राता हैं
बृजवासियों के हैं सखा
वो रास रसैया हैं।

वो तन में मन में
वो ही नयन में
वो बाँसुरी की धुन में
वो कृष्णा हैं।

वो राधिका का प्रेमी हैं
वो गोपियों का प्रेम हैं
राधा रानी का सर्वस्व वो
वो गोपाला हैं।

वो प्यारा हैं
वो न्यारा हैं
वो ही हमारा हैं
वो कान्हा हैं।

स्नेहा - अहमदनगर (महाराष्ट्र)

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