लागी जबसे लगन
खोजे कृष्णा को मन
चैन मिलता नहीं
तुझे ढूँढ़ूँ वन-वन
जीवन की यही आस
तुझसे मिलन की बुझे न प्यास
तू तो जाने है सबकी
हे कृष्ण मुरारी
कब से तेरे द्वारे खड़ा हूँ
कब आएगी मेरी बारी
ओ देवकी नंदन
तू है जग बंदन
कृपा के सागर
अब तू ही बता
तेरे दर्शन को मेरी अँखियाँ
क्या तरसेगी उम्र सारी?
डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन' - जौनपुर (उत्तर प्रदेश)