भादौं महात्म - कविता - अनिल भूषण मिश्र

छठा माह भादौं का आया,
वर्षा चहुँओर घनघोर कराया।
उफनाए हैं सब ताल-तलैया,
उफनाई हैं गंगा यमुना मईया।
कहीं बाढ़ आई है प्रलयंकारी,
कहीं डूब गई खेती सारी।
गरज रहे हैं चमक रहे हैं आसमान में बदल,
तान मिलाये गाते हैं टर-टर दादुर दल।
पंख फुलाए चिड़िया आई
माँग रही है दाना,
गरज-गरज कर भादौं बोले
नहीं किसी को बाहर जाना।
धान खड़ा खेतों में मुस्काता है,
ज्वार बाजरा का जी घबराता है।
रात को छाया घटाटोप अँधियारा है,
पर जुगनू दल ने उसको ललकारा है।
भादौं रात अब हुई भयंकर,
फुफकार रही बन कालिया विषधर।
बहुत हुआ अब न बढ़ेगा 
भादौं का अत्याचार,
जग उद्धारक, दुष्ट विनाशक 
कान्हा ने लीन्हा अवतार।
अष्टम रात रोहिणी जन्मे किशन कन्हाई,
घर-घर बाजन लगी बधाई।
जग भद्र बनाने भूषण दो पद आए हैं,
तभी तो भादौं भाद्रपद कहलाए हैं।

अनिल भूषण मिश्र - प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

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