कान्हा को उठाओं ना - कविता - अनिकेत सागर

नंदबाबा को अपने कान्हा की नटखट लीलाएँ देखें बिना रहा नहीं जाता इसलिए वो अपने कान्हा को यशोदा जी से कहकर उठाने को बोलते है। 

ओ री यशोदा कान्हा को उठाओं ना।
लीला करों नटखट इतना बताओं ना।।

सोते हुए वो शांत-शांत सा रहता है,
पर गोकुल का मन अशांत होता है।
गोकुल नगरी की तरसे सारी गलियाँ,
करें प्रतिक्षा उसकी सभी वो गोपियाँ।
इतना मेरा कहना अब सुन जाओ ना।।

ओ री यशोदा कान्हा को उठाओं ना।
लीला करों नटखट इतना बताओं ना।।

प्यारे मनमोहन कृष्ण को बुलाने आएँ,
ग्वाल बाल भी बांका को बहुत मनाएँ।
एक तो कन्हैया ठाकुर जी ठहरें लीलाधर,
मंत्रमुग्ध करें मुरली से सब को मुरलीधर।
खेलन खेलन में मुस्कान मीठी लाओ ना।।

ओ री यशोदा कान्हा को उठाओं ना।
लीला करों नटखट इतना बताओं ना।।

मन मोहित होवे पैजनियों की खन-खन से,
नाचें झूम-झूम कर प्यारा पूरे तन-मन से।
सृष्टि के कण-कण में उसका प्रेम साजे है,
जब भी मुख से निकले नाम राधे-राधे है।
प्रेम की वर्षा सारे ब्रज धाम में बरसाओं ना।।

ओ री यशोदा कान्हा को उठाओं ना।
लीला करों नटखट इतना बताओं ना।।

अनिकेत सागर - नाशिक (महाराष्ट्र)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos