बढ़ते जाना - कविता - नंदनी खरे

अपना अगला क़दम बढ़ाना,
हर दुर्गम पर्वत चढ़ जाना।
कदम बढ़ाकर थम न जाना,
तुम राहों से थक न जाना।
कुछ तालियों की थपथपाहट सुनकर,
मन हर्षित कर रुक न जाना।
बस तुम आगे बढ़ते जाना।।

धरती अंबर जल में थल में,
अंत आरंभ आज में कल में,
इस दुनिया में तुम छा जाना।
कामयाब जो तुम हो जाओ,
तब अपने आप में गुम न जाना।
बस तुम आगे बढ़ते जाना।।

हर ऊँचाई छूते जाना,
राहों में जब काँटे आए,
तुम राहों से रूठ न जाना।
सितारों के नाम जो आए,
तब तुम कहीं छूट न जाना।
बस तुम आगे बढ़ते जाना।।

नंदनी खरे - जुन्नारदेव, जमकुंडा (मध्य प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos