शिकायत - कविता - अवनीत कौर 'दीपाली'

अथाह उम्मीदों का कारवाँ
जब मेरी राहों से बिछड़ने लगा
हर उस शख़्स से,
शिकायत होने लगी
जो मुझे तन्हा करने लगा। 

शिकायत भी उन्हीं से होती है
जिन पर हम ऐतबार करते हैं
सौ बार तोड़े वो उम्मीदें
उसी से शिकायत, 
बारंबार करते हैं। 

जीवन के हर पहलू से शिकायत रही
अतीत से कुछ शिकवे, 
संप्रति से हताशा, 
अगत से कुछ उम्मीदें, 
जीवन में शिकायतों की
यही परिभाषा रही।

अवनीत कौर 'दीपाली' - गुवाहाटी (असम)

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