बात पुरानी कुछ नई नहीं है,
खरी-खरी, छुई-मुई नहीं है।
राह मिली पथरीली हरदम,
फिर भी घटा नहीं है दमख़म।
कतई कभी न छोड़ी ज़मीन,
बनी ज़िंदगी रही एक मशीन।
मुश्किल से था सीखा चलना,
आदत नहीं किसी को छलना।
यादें खट्टी-मीठी या नमकीन,
फिर भी हम नहीं हुए ग़मगीन।
अब तक हुआ न कोई सुधार,
अहम का अंदर तेज़ बुख़ार।
हम हैं बिगड़े पर तुम न बिगडों,
ख़ुद से हर्गिज़ कभी न झगड़ों।
आसान कभी न मुश्किल होती,
राह कभी न कोई मंज़िल होती।
नागेंद्र नाथ गुप्ता - मुंबई (महाराष्ट्र)