अख़बार वाला - कविता - अमरेश सिंह भदौरिया

सर्दियों की सुबह
घना कोहरा
कपकपाती ठण्ड
एक पुरानी साइकिल
जिसमें टँगा है एक थैला
उस थैले में है...
ज़िम्मेदारियों का बोझ
परिस्थितियों की जकड़न
जीने की उत्कट चाह
कामनाओं की विवशता
रिश्तों की मधुरता
पापी पेट की आग
मासूमों की ख़्वाहिश
नौनिहालों का उन्मुक्त बचपन
पथराई आँखों के सपने
दाम्पत्य के शुष्क अहसास
सम्बन्धों की संजीवनी
अन्तहीन संघर्ष
घर वापस जाने की विवशता
और...
सुबह का बचा हुआ अख़बार
जिसमें छपी हैं
दुनिया भर की ख़बरें
पर अफ़सोस
पारदर्शी मीडिया की नज़र में 
उसका अपना कहीं नाम नहीं है।

अमरेश सिंह भदौरिया - रायबरेली (उत्तर प्रदेश)

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