ज्ञान दायनी माता मेरी नैया पार लगा दो - कविता - डॉ॰ कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव

दूर-दूर तक तम ने अपनी,
चादर है फैलाई।
तरस रहे हम उजियारे को,
तम ने कला दिखाई।
तम को दूर भगा दो अम्बे ज्ञान का दीप जला दो।
ज्ञान दायनी माता मेरी नैया पार लगा दो।।

जो लिखना मैं चाहूँ मैया,
झट से मैं लिख डालूँ।
दिशा दिखाए मेरा लेखन,
मंज़िल को मैं पा लूँ।
ज्ञान दीप के पथ पर मैया काँटे सभी हटा दो।
ज्ञान दायनी माता मेरी नैया पार लगा दो।।

निर्मल कर दो मेरे हिय को,
बुद्धि, विद्या का वर दो।
सतत लेखनी चलती जाए,
माँ मधुरिम स्वर दो।
कलुष ह्रदय को दूर करो माँ नई दिशा दिखला दो।
ज्ञान दायनी माता मेरी नैया पार लगा दो।।

डॉ॰ कमलेन्द्र कुमार श्रीवास्तव - जालौन (उत्तर प्रदेश)

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