मिलता है हर्गिज़ नहीं, फ़ुर्सत का कुछ वक़्त।
पूजा समझें कार्य को, न समय गंवाए व्यर्थ।।
करते हैं चिंता बहुत, सिर पे बोझ अनेक।
परहित पर उपकार के, करें काम कुछ नेक।।
रोना धोना काम का, मिले नहीं आराम।
कामों से पीछे हटे, होगा काम तमाम।।
घर बाहर फ़ुर्सत नहीं, दफ़्तर में ना चैन।
फ़ुर्सत पाने के लिए, मन रहता बेचैन।।
थोड़ी सी फ़ुर्सत मिली, आया लॉकडाउन।
काम घरेलू थे बहुत, सेहत हुई ब्राउन।।
आपाधापी थी बहुत, दिन यूँ जाते बीत।
काल करें सो आज कर, हटी पुरानी रीति।।
जब फ़ुर्सत के पल मिले, हम बनाएँ सुंदर।
जो वक़्त की क़दर करें, बनता वो सिकंदर।।
नागेन्द्र नाथ गुप्ता - मुंबई (महाराष्ट्र)