भूख - कविता - डॉ॰ सिराज

शाम को वापस आना,
और कुछ लेते आना।
कल से संभाले रखा है इन्हें,
समझा-बहला कर।
अब और सहा नहीं जाता,
बीमारी में भूख को।
देखो इनकी आँखें धस गई हैं
गाल चिपक गए हैं,
चेहरा सूख गया है।
कल पटवारी के यहाँ गई थी
लगी हुई बोरियाँ देख कर लगा था कि
कुछ अनाज देगा,
पर उसकी नज़रों में 
हवस देख कर वापस आ गई।
अब तुम ही कुछ करो,
इन मासूमों को बचा लो।

डॉ॰ सिराज - बिदर (कर्नाटक)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos