बेटियाँ - कविता - वर्षा अग्रवाल

पायल की झंकार बेटियाँ,
होती बड़ी समझदार बेटियाँ,
माँ-बाप को करती सहयोग,
कभी ना करती है उनका विरोध,
ख़्वाहिशों को दिल में रखती,
दर्द दिल का जल्दी बयाँ ना करती,
बचपन से ही कहलाती पराई बेटियाँ,
होती दो घरों की लाज बेटियाँ,
कभी कोयल सी गुनगुनाती,
कभी चंदा से शीतल बेटियाँ,
कहीं होती बेटो से बढ़कर,
संभालती अपने घर बार बेटियाँ,
शुक्र है अब वक़्त बदला है,
बेटियों को भी ज़माने ने समझा है,
अब कोख में न मरती बेटियाँ,
बचाई जाने लगी बेटियाँ,
दर्द माँ-बाप का आँखों से समझती,
दायित्व माँ बाप के भी सम्भाले,
आज बेटियाँ हर मंच पर आगे दिखती,
आज स्वाभिमानी बेटियाँ,
घर बाहर दोनों संभालती,
होती घर की शान बेटियाँ।

वर्षा अग्रवाल - दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos