मेरी नन्हीं दुनिया - कविता - सुनील माहेश्वरी

जहाँ जन्म हुआ 
उन यादों को कैसे भूल जाएँ,
जहाँ बीता बचपन मेरा 
उस ख़्वाबगाह को क्यों 
भूल जाएँ।
मिट्टी के घरौंदे 
बचपन की मस्ती 
थी सबसे अलग, 
मुस्कान हरदम हँसती 
कैसे उन यादों को 
ख़ुद से दरकिनार 
कर दूँ।
कैसे उन पलों से 
मैं अपना नाता तोड़ दूँ।
जब जाता हूँ,
अपनी उसी 
नन्ही दुनिया में
जहाँ पर खेला बचपन मेरा,
मेरे मस्तीखोर यार में 
नया तराना नई वो दुनिया,
कहा से कहाँ आ गए हम, 
कितना सफ़र तय करते करते,
कितना आगे बढ़ते आ गए हम।

सुनील माहेश्वरी - दिल्ली

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