भगवान् श्रीकृष्ण का अवतरण - गीत - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'

पुनः अवतरण इस धरती पर,
आश्रय केवल कृष्ण तुम्हारा।

क्षरण हो रहा है संस्कृति का,
स्वार्थमयी हैं सारे बंधन।
ऐसी विषम परिस्थिति में प्रभु,
करता है मन मेरा क्रंदन।
राह बता दो आकर मोहन,
चरण शरण करता हूँ वंदन।

ऐसे मे मैं खोज रहा हूँ,
मिल जाएगा मुझे किनारा।

आतंकी के जाल बिछे हैं,
आओ श्याम मिटाना होगा।
घर-घर जलतीं अरे! राधिका,
हे प्रिय कृष्ण! बचाना होगा।
कायरता मन भीतर बैठी,
गीता पुनः सुनाना होगा।

पाच्जन्य फूँको अरि दहले,
हे योगेश्वर! तुम्हीं सहारा।

कालिंदी तट सूने-सूने,
कटे कदम्ब तुम्हारे प्यारे।
मथुरा की गलियों में खोजे,
साधु अकेला राह निहारे।
अप्रतिम योद्धा लो फिर उद्भव,
हम सबके हो कृष्ण दुलारे।

पुलिन 'अंशुमाली' के बन कर,
रोंको भटकी जीवन धारा।

शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)

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