कृष्ण गोपाल सोलंकी - दिल्ली
सावन की रुत - कविता - कृष्ण गोपाल सोलंकी
गुरुवार, अगस्त 05, 2021
रिमझिम-रिमझिम बादल बरसे पवन चले पुरवाई,
भारत का अभिनंदन करने सावन की रुत आई।
आसमान पर काले बादल मस्तक तिलक लगाते हैं,
इंद्रधनुष के सातों रंग करके शृंगार सजाते हैं।
नदियाँ कलकल साज बजाएँ हवा करे अगुवाई,
भारत का अभिनंदन करने सावन की रुत आई।
दादुर, मोर, पपीहा बोले झूमें रुत मतवाली,
पंचम स्वर में कोयल गाए बैठ आम की डाली।
बरखा रानी तीजों के फिर अंजुली भरकर लाई,
भारत का अभिनंदन करने सावन की रुत आई।
हर्षोल्लास मनाएँ सारे इस रुत के आवन की,
पीपल पर भी भीड़ लगी है झूल पड़ी सावन की।
छोटे बच्चों ने 'गोपाला' काग़ज़ की नाव बनाई,
भारत का अभिनंदन करने सावन की रुत आई।
रिमझिम-रिमझिम सावन बरसे पवन चले पुरवाई,
भारत का अभिनदंन करने सावन की रुत आई।
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