सावन का महीना - कविता - सोनल ओमर

बंजर धरती पर जब हरियाली लहराए,
उदास सूना-सूना दिल भी खिल-खिल जाए।
उमड़-उमड़ के बादल गरजने लग जाए,
जब सावन का महीना झूम-झूम कर आए।।

कलियाँ फूल बने उनपर भँवरे मँडराए,
रिमझिम बरखा में मोर नाचे, पपीहा गाए।
प्रकृति को देखकर हर्षित मन मुस्काए,
जब सावन का महीना झूम-झूम कर आए।।

शिव की आराधना में अनुष्ठान करे जाए,
भक्त हर-हर महादेव के जयकारे लगाए।
काँवरियाँ शिवलिंग का अभिषेक कराए,
जब सावन का महीना झूम-झूम कर आए।।

वृक्षों की शाखाओं पर झूले पड़-पड़ जाए,
स्त्रियाँ चूड़ी पहने हाथों में मेहंदी लगवाए।
भाइयों की कलाई पर बहने राखी सजाए,
जब सावन का महीना झूम-झूम कर आए।।

सोनल ओमर - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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