कृष्ण जन्माष्टमी - कविता - महेन्द्र सिंह राज

कृष्ण पक्ष अन्धेरी रात,
कान्हा जी के जनम की बात।
अष्टम् तिथि भाद्रपद मास,
क़ैद में थे माता अरू तात।। 

घना अन्धेरा बाहर था,
बिजली कौंध गई अन्दर।
आरक्षी सब मूर्छित हो गए,
देख के भीतर का मन्ज़र।।

आधी रात की बेला में,
जब अवतार लिए कान्हा।
स्वत:पिता पद बेड़ी खुल गई,
तब मात पिता ने पहचान्हा।। 
 
लेकिन बच्चे को देना था,
क्रूर कंस के हाथों में।
मात-पिता हो गए दुखी,
व्याकुल पड़े अवसादों में।। 

अम्बर से आई गम्भीर गिरा,
सुत को गोकुल में दे आओ। 
यशोदा नन्द नवजात सुता को,
नन्द भवन से ले आओ।।

टोकरी में सुत ले वसुदेव चले,
कारागार के फाटक स्वयं खुले।
किसी को कुछ ना भान हुआ,
देवकी करती शिशु हेतु दुआ।। 

जब यमुना तीर वसुदेव गए,
लखि बाढ तेज आकुल भए।
पर हिम्मत कर उतरे जल में,
छू पद प्रभु जल सिमटा पल में।। 

वसुदेव पहुँचे जब नन्द भवन,
कोई जाना ना उनका आगमन। 
सुत रखकर सुता को ले आए,
यह बात न कोई लख पाए।।

कारागार में पहुँचे बन्द हुआ,
सब कार्य पूर्ण सानन्द हुआ। 
शिशु रुदन सुने  सब जाग गए,
आरक्षी, जन सब नाग भए।।

जाकर सूचित किए कंस को,
आ पहुँचा ले निज विध्वंस को। 
कन्या को पटका था पृथ्वी पर,
पर उड़ गई वह दूर अम्बर।। 

जाते जाते वह बोल गई,
सारे राज़ को खोल गई।
तू मुझसे काहे को जलता,
तेरा काल गोकुल में पलता।।

सुता वह विन्ध्य भवानी बन,
विंध्याचल में पूजी जाती हैं। 
चुनरी मिष्ठान्न चढावै जनता,
दुनिया भर में पूजी जाती हैं।।

कृष्ण जन्माष्टमी की पावन,
बधाई हम सबको देते हैं। 
प्रभू कृपा सब सुखी रहें,
अनन्त वलैय्या लेते हैं।। 

महेन्द्र सिंह राज - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)

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