मन बृजवासी हो जाता है - कविता - राजकुमार बृजवासी

पग धरे जो वृंदावन में बृजवासी हो जाता है,
भूल बैठे वो जग की माया श्री चरणों में खो जाता है।
अधरों से लगाकर हरी नाम का प्याला राधे राधे गाता है,
एक बार जो आए ब्रज में बृजवासी हो जाता है।

ये धाम है प्रिया और प्रीतम का आज भी मुरली बजती है,
निधिवन में नित्य करें गिरधारी गोपियाँ खिलखिला कर हँसती है।
देखन को महादेव ललचाए धर कर नारी रूप में आए थे,
सुध बुध गंवा बैठे शंभू मोहन मुरली ऐसी बजाए थे।
पहचान गए बनवारी वो तो अंतर्यामी है,
बोले कन्हैया हे महाकाल आप तो जगत के स्वामी हैं।
मनभावन है ब्रज की भूमि स्वर्ग भी फीका पड़ जाता है,
एक बार जो आए ब्रज में बृजवासी हो जाता है।

आज भी यमुना बहती है प्रेम वही दर्शाती हैं,
श्याम सुंदर की मुरली बाजे प्रेम सुधा बरसाती है।
ब्रज धाम की माटी से हरि चरणों की ख़ुशबू आती है,
स्वर्ग से आती हवा ब्रज में तन मन पावन कर जाती है।
राधे राधे जपे निरंतर दूजा कोई काम नहीं,
कौन है ब्रज में ऐसा जिसके मुख पर मेरे सांवरे का नाम नहीं।
मस्ती में झूमे हरी नाम की भक्ति में खो जाता है,
एक बार जो आए ब्रज में बृजवासी हो जाता है।

राजकुमार बृजवासी - फरीदाबाद (हरियाणा)

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