मेरे साथ जी लो - कविता - संदीप कुमार

एक दिन, बस एक दिन ज़िंदगी का, तुम मेरे साथ जी लो।
उस दिन सुबह से शाम तक तुम मेरे साथ रहना,
जैसे बहता पानी नदियों संग, तुम मेरे साथ बहना।
जो भी हों ख़्वाब, जो भी हों शिकायतें तुमको,
उस दिन अपने दिल की मुझ से हर बात कहना।
एक दिन, बस एक दिन...

उस दिन एक ही कप में चाय मेरे साथ पी लेना,
सब भूल कर उस दिन ज़िंदगी मेरे साथ जी लेना।
ख़्वाब जो भी टूटे हों कभी, ज़िंदगी में तुम्हारी,
मोहब्ब्त के सुई तागे से, एक बार फिर से सी लेना।
एक दिन, बस एक दिन...

उस एक दिन तुमको अपने हाथों से खिलाना है मुझे,
फ़िक्र करता हूँ तुम्हारी बहुत, बस ये दिखाना है मुझे।
कितने ख़ूबसूरत, हसीन ख़्वाब देखता हूँ मैं तुम संग,
तुम बिन हूँ मैं बहुत अकेला, बस यही बताना है मुझे।
एक दिन, बस एक दिन...

उस दिन सामने बैठ कर, मैं बस तुम्हारा दीदार करूँगा,
चुप बैठ कर नज़रों से ही, मैं इश्क़ का इज़हार करूँगा।
तुम समझ पाई, मेरी नज़रों की बातों को तो ठीक है,
वरना फिर पूरी ज़िंदगी, मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगा।
एक दिन, बस एक दिन...

संदीप कुमार - नैनीताल (उत्तराखंड)

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