भावनाएँ बारिश की - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

ये भी अजीब सी पहली है
कि बारिश की भावनाओं को तो
पढ़ लेना बहुत मुश्किल नहीं
समझ में भी आ जाता है,
पढ़कर समझ में भी आता है।
परंतु भावनाओं की बारिश
कब, कहाँ कैसे और
कितनी हो जाए,
कोई अनुमान ही नहीं।
हमारी ही भावनाएँ
कब, कहाँ, कैसे और कितनी
कम या ज़्यादा बरस जाएँगी
हमें ख़ुद ही अहसास तक नहीं।
भावनाओं की बारिश के
रंग ढ़ग भी निराले हैं,
अपने, पराए हों या दोस्त दुश्मन,
जाने पहचाने हों या अंजाने, अनदेखे,
जल, जंगल, ज़मीन, प्रकृति,
पहाड़, पठार या रेगिस्तान,
धरती, आकाश या हो ब्रह्माण्ड,
पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, कीट-पतंगे,
झील, झरने, तालाब, नदी नाले,
या फैला हुआ विशाल समुद्र,
सबकी अपनी अपनी भावनाएँ हैं
और सबके भावनाओं की
होती है बारिश भी।
इंसानी भावनाएँ होती सबसे जुदा,
इन्हें और इनकी भावनाओं को
न पढ़ सका, इंसान तो क्या
शायद ख़ुदा भी।
भावनाएँ और उसकी बारिश की
लीला है ही बड़ी अजीब सी।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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