ज़िंदगी के आज ऐसे मोड़ पर आकर खड़े हैं,
देख कर हालात उर उद्गार मेरे रो पड़े हैं।
मन व्यथित है आज मेरा,
तन थका लाचार है।
दीप आशा का बुझा है,
हर तरफ़ अँधियार है।
है समय प्रतिकूल अपना,
पंथ कंटक से भरे हैं।
चैन अब मिलता नही हम,
घोर विपदा में घिरे हैं।
चल रहा प्यासा पथिक यह दूर पानी के घड़े हैं।।
कर रहे संघर्ष प्रतिदिन,
बस निराशा हाथ लगती।
है तमस में ज़िंदगी यह,
आस की किरणें न दिखती।
दर-ब-दर मिलती हैं ठोकर,
टूटते हैं आज सपने।
देख व्याकुलता हमारी,
हस रहे हैं आज अपने।
अश्रु मेरे बह रहे हैं घाव अंतस में बड़े हैं।।
लग रहे मधुमास पतझड़,
सूखती कोमल लताएँ।
ज़िंदगी के कर्मपथ पर,
मिल रहीं नित विफलताएँ।
शांत हूँ एकांत में बस,
सोचता कब भोर होगी।
कब समय अनुकूल होगा,
हर ख़ुशी इस ओर होगी।
हैं अधर चुप-चाप मेरे भेद कुछ उर में गड़े हैं।।
अभिनव मिश्र "अदम्य" - शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश)