ख़ामोशी कुछ कहती है,
कभी तो इसको सुना करो।
गवाह है दिल ये अंदर अपने,
असंख्य जज़्बात रखती है।
अनकही ज़ुबाँ इसकी,
कभी तो तुम समझा करो।
हवा का झोंका साथ ले आया,
गुम-सुम सी बातें और स्मृतियों का साया।
मेरे साथ मेरे हक़ में कुछ भी नहीं है अब,
ख़्वाबों की दुनिया और तसव्वुर ही है अब।
ख़ामोशी मेरे सूने से जीवन की बहार ढूँढती है,
ख़ुशबू से महकती समाँ ढूँढती है।
बंज़र मन में तेरे क़दमों की आहट ढूँढती है,
बेबसी अब थक कर मुस्कुराहट ढूँढती है।
अतुल पाठक "धैर्य" - जनपद हाथरस (उत्तर प्रदेश)