मेरी प्रिय - हास्य कविता - समय सिंह जौल

तुझको ना देखूँ तो मन घबराता है,
तुझ से बातें करके दिल बहल जाता है।
मेरा खाना पानी भूल जाना,
तुझे भूखी देखकर तुरंत खाना देना,
रात को भी तकिए के साथ लेकर सोना।
कभी-कभी घर वाले भी डाँटते हैं,
तेरे साथ ज़्यादा समय बिताने में।
पर लेकिन क्या करूँ? कहाँ जाऊँ?
एक तेरा ही सहारा इस लॉकडाउन में,
मेरा भी वक़्त बीत जाता तेरे साथ में।
जब भी तेरी तरफ़ देखता,
मुझे अपना चेहरा नज़र आता है।
तेरी पलके खोल कर देखता 
सारा जहाँ नज़र आता है।
मेरी प्यारी भोली मूरत,
प्रिय बन गई आज ज़रूरत।
तेरे खाने के वक़्त भी 
नहीं चाहता तुझे छोड़ना,
तुझ में ही जन्नत है,
तू ही मेरी मन्नत है।
तुझको देखकर सारी 
दुनिया महसूस कर लेता हूँ,
अपनों का चेहरा भी 
तुझ में देख लेता हूँ।
हे प्रिय तू ऐसी किताब है,
जिसमें दुनिया का हर खिताब है।
कभी-कभी जब भी नींद खुलती है,
तुझे अपने हाथों में लेकर
तुझ पर ही मेरी पलकें टिकती है।
वायरस से मुझे और तुझे भी
बचाने की फ़िक्र रहती है।
मैं नहीं चाहता तुझे कोई और देखे
क्योंकि तुझ में मेरे सारे रहस्य हैं,
इसलिए मैं तुझे ताला लगाकर रखता।
समय इसको ग़लत न समझे
यह लिखने की स्टाइल है।
करूँ ख़ुलासा इसके नाम का,
यह मेरी प्यारी मोबाइल है।।

समय सिंह जौल - दिल्ली

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