अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेल फ़अल
तक़ती : 22 22 22 22 21 12
हम जीते या वो जीते बस जीत हुई।
इसी वजह से इतनी गहरी प्रीत हुई।।
किन्तु हार को गले लगाना भी सीखा,
इसीलिए मुश्किल हमसे भयभीत हुई।
तूफ़ानों ने आँख दिखाना छोड़ दिया,
जब से प्यारी पुरवा अपनी मीत हुई
ग़ज़ल हुए जज़्बात क़लम हँस कर बोली,
इतरा कर हर बात मचलता गीत हुई।
इसका ग़म उसकी आँखें नम क्या कहने,
अहा मुहब्बत की यह अद्भुत रीत हुई।
नीरस को भी ख़ुश देखा तो दिल बोला,
पत्थर की फ़ितरत कैसे नवनीत हुई।
जिसने दुख में भी हँसना सीखा "अंचल"
उस जीवन की लय मीठा संगीत हुई।
ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)