अच्छा होगा - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

मन के परिंदे ने अभी तक
हौसला नहीं खोया है,
उसका आत्मविश्वास
अभी नहीं सोया है।
थोड़ा डगमगा ज़रूर रहा है
पर पीछे हटने का मन भी
भला कहाँ हो रहा है?
क्योंकि
अभी भी उम्मीद का जुगनू
दूर ही सही चमक रहा है,
बस मात्र यही चमक
हौसला बढ़ा रहा है।
मन का आत्मविश्वास
फिर से मज़बूत हो रहा है,
कालिमा छँटेगी, प्रकाश फैलेगा,
चेहरों पर छाई निराश की जगह
मुस्कान फिर से होगा,
न विश्वास टूटा है, न टूटेगा
कुछ भी हो जाए आस न छूटेगा,
शायद इसीलिए  
धैर्य मज़बूत हो रहा है,
आने वाले हर पल के साथ
निश्चित ही कल अच्छा होगा,
हर चेहरे पर मुस्कान
हर ओर ख़ुशियों का डेरा होगा।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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