गोधूलि बेला पीछे,
या उषा की लाली में,
पूषा के सैंदुर में या,
उषा कपोल प्याली में।
निर्झर की कल, कलकल में,
या विहगों की टोली में,
स्नेह भरे मानस में,
बेकल पपीहा बोली में।
मैली सी चाँदनी में,
या मुरझाए से सुमनों में,
फीकी प्रभात वेला में,
या अंधियारे कोनों मे।
भीगी सी कुछ पलकों में,
उन मूक बने अधरों में,
या छद्म भरे हासों में,
या निष्ठुर श्रुति वधिरों में।
खोजने वाला हो उनको,
ख़ुशियों के महा हवनों में,
वे यहाँ वहाँ मिलेंगे,
दफ़ने इन ही भवनों में।
डॉ. देवेन्द्र शर्मा - अलवर (राजस्थान)