औरत - कविता - स्मृति चौधरी

संवेदना और सादगी से निर्ध्वनि के शब्दों को बुनती,
यथार्थ और परिकल्पना को कैनवस पर उकेरती,
इच्छा और विश्वास के मध्य अस्तित्व को संजोती,
भूली बिसरी यादों से ख़ुद को मिट्टी सा करती,
निश्छल धवल सा प्रेम लिए ख़ुद ही ख़ुद में प्राणों को रचती,
शरीर के परे संबंधों को संबंधों के पार समेटती,
धैर्य और विश्वास की पल-पल सबमें आस जगाती,
एक औरत,
तमाम लौकिक इकाइयों से गुज़रकर अलौकिक आत्मा है होती।।

स्मृति चौधरी - सहारनपुर (उत्तर प्रदेश)

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