तुम जैसे ना जग में महान - कविता - हरदीप बौद्ध

ज्ञान के सूर्य युग प्रवर्तक ना तुम जैसा कोई जग में महान।
कर महापरिवर्तन भारत में, किया सभी को एक समान।।

मज़लूमों के तुम थे हितकारी, जिसको जाने दुनिया सारी।
पाकर शिक्षा विपरीत परिस्थितियों में, बने विश्व विद्वान।।

मुड़कर कभी ना पीछे देखा मिटाई आपने नफ़रत की रेखा।
है मानवता की अजब मिशाल, आपका विशाल संविधान।।

कर्म आपके जग में न्यारे, तम को मिटाते जो उजियारे।
भारतवासी अदा कभी नहीं, कर सकते आपके अहसान।।

अमर आपकी विलक्षण प्रतिभा, जिनसे सारा जग सीखा।
गए सीखने देश-विदेश, बुद्धिबल से मिला जहाँ सम्मान।।

सहे विरोध जिसने बड़े भारी, फिर भी रहा संघर्ष जारी।
उस भारत रत्न महामानव का करे "दीप" गुणगान।।

हरदीप बौद्ध - बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos