यूँ ना छिप-छिपकर,
तुम अब जिया करो।
घड़ी निकल ना जाए,
प्रेम के इज़हार की।
बहुत ही छोटी-सी है,
ये उम्र तेरे प्यार की।
अब तक स्थिर होकर,
यूँ वक़्त ना गंवाया करो।
जहाँ भी है दिवानंगी,
वो रीत है संसार की।
बहुत ही छोटी-सी है,
ये उम्र तेरे प्यार की।
जवानी की मुस्कान भर,
मस्ती में झूमा करो।
दिली ख्वाहिश है अब,
जो तुम्हारे दिलदार की।
बहुत ही छोटी-सी है।
ये उम्र तेरे प्यार की।
हिरणी-सी चाल पाकर,
यूँ बाहर आया करो।
ये हर घड़ी पल है,
नयनों के तकरार की।
बहुत ही छोटी-सी है,
ये उम्र तेरे प्यार की।
कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)