ये उम्र तेरे प्यार की - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"

यूँ ना छिप-छिपकर,
तुम अब जिया करो।
घड़ी निकल ना जाए,
प्रेम के इज़हार की।
बहुत ही छोटी-सी है,
ये उम्र तेरे प्यार की।

अब तक स्थिर होकर,
यूँ वक़्त ना गंवाया करो।
जहाँ भी है दिवानंगी,
वो रीत है संसार की।
बहुत ही छोटी-सी है,
ये उम्र तेरे प्यार की।

जवानी की मुस्कान भर,
मस्ती में झूमा करो।
दिली ख्वाहिश है अब,
जो तुम्हारे दिलदार की।
बहुत ही छोटी-सी  है।
ये उम्र तेरे प्यार की।

हिरणी-सी चाल पाकर,
यूँ बाहर आया करो।
ये हर घड़ी पल है,
नयनों के तकरार की।
बहुत ही छोटी-सी है,
ये उम्र तेरे प्यार की।

कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)

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