जब एक बेटी पढ़ती है - गीत - शमा परवीन

जब एक बेटी पढ़ती है,
कई पीढ़ियों को साक्षर करतीं हैं।

अंदाज, अद्भुत, निराला, 
बेटियों का बोलबाला,
अक्षर-अक्षर फ़ैला उजाला।
ये सब सम्भव हो पाता है तभी
जब एक बेटी पढ़ती है...

नाम होता है बेटियों का,
परिवार, समाज और देश का,
सीखती-सीखाती है बेटियाँ 
जब एक बेटी पढ़ती है...

कर्तव्यों का बोध,
अक्षरों का मोल,
शिक्षा है अनमोल,
सबको समझाती है बेटियाँ,
जब एक बेटी पढ़ती है...

बिना थके बिना रूके,
आगे बढ़ती है बेटियाँ,
मानव रूपी दानव से बिना डरे
डटी रहती है बेटियाँ, 
जब एक बेटी पढ़ती है...

भेदभाव को पार कर,
सहनशीलता को नाघ कर,
संघर्ष को झेल कर,
कर्तव्यपथ को जोड़ कर,
अग्नि में तप कर,
अंधविश्वास का तिरस्कार कर, 
मिशाल बनती है बेटियाँ,
जब एक बेटी पढ़ती है...

कह रहीं हैं आज शमा दिल खोलकर,
रोना धोना बंद करो,
क़दम बढ़ाओ विद्यालय चलो,
बता दो ज़माने को,
कोई काम ऐसा नहीं,
जो नहीं कर सकतीं  बेटियाँ,
जब एक बेटी पढ़ती है...

शमा, रोशनी या हो परवीन,
दुनियाँ क्या आसमान भी,
छू सकती है बेटियाँ,
यक़ीनन कुछ भी कर सकती है बेटियाँ,
जब एक बेटी पढ़ती है...

शमा परवीन - बहराइच (उत्तर प्रदेश)

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