पश्चाताप - कविता - अवनीत कौर "दीपाली सोढ़ी"

पश्चाताप के बेहिसाब आँसू
न मिटा सकें दोष मेरे मन का
भरा पड़ा हैं, गुबार दिल में
हिला दिया आस्तित्व मेरे मनोबल का
हताश सा हूँ, बेइंतहा बेबस
बरस पड़ा हैं दुःख मेरे हृदय का। 

वो अहसास पश्चाताप का
रौंद रहा हैं मेरे तन मन को
विरह रूद्र मेरे मस्तक का
त्रास त्रास कर रहा हैं
मेरे आस्तित्व को। 

छलावा सा हुआ कुछ मेरे साथ
क्यों छोड़ दिया मैंने तेरा हाथ
आत्मा को घात किया तुम्हारें
क्यों देखा मैंने अपना स्वार्थ। 

धिक्कार रहा हैं, मुझे मेरा आत्म सम्मान
क्यों खुदगर्ज हुई किया अपमान
ख़ुद से हुई मैं शर्मसार
पश्चाताप के आँसू भी न ला सकेंगे
मेरे जीवन मे ठहराव
ज़िंदगी के काफ़िले में चल तो रही हूँ
तेरी यादों, तेरे अहसासों के साथ
पश्चाताप का सैलाब
न दे सकेगा तेरे सवालों का जवाब। 

अवनीत कौर "दीपाली सोढ़ी" - गुवाहाटी (असम)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos