एक सपने का सच होना,
कितना घोर संघर्ष,
फिर उसका साकार होना,
कितने मुक़ाम तय करके,
उसके प्रतिफल तक जाना,
चाहे कितनी भी हो दुविधा,
उसके परिणाम का
जायज़ा लेना।
कितनी नींद को दुस्वार करके
हर सम्भव प्रयास की
कहानी लिखना।
और फिर जब सपना पूरा हो
यकीनन ख़ुद की
मेहनत पर नाज़ होना,
लगता है कि जैसे हमने,
सब कुछ पा लिया,
हर सपने हर ख़्वाहिशों
पर जैसे पंख लगा दिया,
अब हौसला ज़िंदा है,
जिसने भी नहीं की मेहनत,
सिर्फ़ आज़माई,
वो सब आज शर्मिंदा है।
सुनील माहेश्वरी - दिल्ली