नारी प्रेम की परिभाषा है
आँचल में उसके दूध भरा,
जिसके प्रेम की पावन वृष्टि से
घर का हर कोना है हरा भरा।
नारी सृष्टि की आदि शक्ति है
सृष्टि रचना में उसका हाथ,
परिवार अरु घर संचालन में
देती परिजन का पूरा साथ।
नारी माँ बच्चों की प्रथम गुरू
उसके संरक्षण में बच्चा पलता,
जिसको मिला ना माँ का प्यार
उस जन को आजीवन खलता।
नारी की तुलना नर से हो
यह कभी नहीं हो सकता है,
सहनशक्ति की पराकाष्ठा नारी
नर प्रसव पीड़ा कब सहता है।
नारी जीवन है भीषणद्वन्द्व भरा
सुनिए उसकी करुण कहानी,
आँचल जिसका पय पूरित है
पर नयन भरा सागर भर पानी।
घर परिवार पास पड़ोस की
सबकी प्यारी नारी होती है,
उसकी रक्षा करना हम सबकी
जवाबदेही, ज़िम्मेदारी होती है।
ऐसी नारी की अस्मत यदि
लुटती जाती है बाज़ारों में,
नर मर जा चुल्लू भर जल में
शर्म कभी ना होती गद्दारों में।
नारी का जब सम्मान करोगे
तभी यह समाज उन्नत होगा,
हर नारी की अस्मत रक्षित हो
तभी पूर्ण हमारा मन्नत होगा।
महेन्द्र सिंह राज - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)