नारी शक्ति - कविता - अवनीत कौर "दीपाली सोढ़ी"

नारी हूँ मैं, ख़ुद में ही मैं शक्ति हूँ।
जीवन की हैं शक्ति मुझसे, 
हर जीवनी की हैं मुक्ति मुझसे, 
हर शक्ति का रूप हैं मुझमें, 
हर स्वरूप की भक्ति मुझमें, 
नारी हूँ मैं, ख़ुद में ही मैं शक्ति हूँ। 

मैं धरा, मैं इक नारी, 
मैंने ही सृष्टि संवारी, 
मुझमें आलौकिक शक्ति समाई, 
गर्भ पीड़ा शक्ति कुदरत ने,
मुझमें ही रमाई। 
नारी हूँ मैं, ख़ुद में ही मैं शक्ति हूँ। 

नारी रूप तेरा हैं एक,
स्वरूप तेरे अनेक। 
बेटी, बहन, माँ, अर्धागिनी, 
हर रूप की हैं तू पूरक, 
हर रिश्तें की हैं तू दीर्घकूरक्। 
नारी हूँ मैं, ख़ुद में ही मैं शक्ति हूँ। 

श्रेष्ठ से भी सर्वश्रेष्ठ मैं सर्वज्ञाता, 
चेतना की मैं हूँ विज्ञाता, 
कोमल हृदय की मैं हूँ परिज्ञाता, 
मैं नारी हूँ, मैं शक्ति की परिगाथा। 

अवनीत कौर "दीपाली सोढ़ी" - गुवाहाटी (असम)

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