कविता लेखन है कला, विद्या का उपहार।
कविगण करते हैं सदा, इस पर जान निसार।।
मन के भीतर भाव हो, कर में कलम दवात।
नयन युगल में स्वप्न हो, दिल में हो जज़्बात।।
कवि के माध्यम ही चले, सदा कलम की धार।
बहे खूब संवेदना, मन-मंदिर के द्वार।।
भाव शिल्प उन्नत रहे, संयोजित हो शब्द।
पढ़े इसे जो होय सो, उद्वेलित अरु स्तब्ध।।
देश भक्ति की भावना, मन में रहे अपार।
उपमाएँ भी साथ हो, रूठे न अलंकार।।
कला पक्ष सुंदर रहे, आशय हो अभिराम।
छंद बद्ध या मुक्त हो, झरे भाव अविराम।।
ध्यान शिल्प पर भी रहे, शब्दों का हो खेल।
बिम्बों का उपयोग हो, वर्णों का हो मेल।।
मर्यादित हो लेखनी, मिले सभी को ज्ञान।
कवियों को मिलता रहे, सदा मान सम्मान।।
डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)