नारी - कविता - नीरज सिंह कर्दम

सुख दुःख में साथ खड़ी रहती है,
हर कठिनाई में संघर्ष करती है,
अपना दर्द छुपा कर वो
सबको खुश रखती है।

हमसफ़र के साथ वो
क़दम से क़दम मिलाकर चलती है,
अपने दुःख में भी सबके लिए
हँस लेती है।

ख़ुद से ज्यादा परिवार का
ख़्याल रखती है,
ख़ुद भूखी रह जाए पर
सबका पेट भरती है।

हर समय में उसका 
काम करते गुज़र जाता है,
पर आराम कभी ना करती 
और हमेशा चेहरे पर मुस्कान रहती है।

पत्नी बनकर वो 
पति का ख़्याल रखती है,
माँ बनकर 
बच्चों को प्यार करती है।

चेहरा हमेशा मुस्कुराता हैं
कभी ना चेहरे पर उदासी लाती है,
सबकी ख़ातिर वो
अपना दुःख भूल जाती है।

नीरज सिंह कर्दम - असावर, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)

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