कर्म पथ - कविता - सुनील माहेश्वरी

ऐ मेरे दोस्त,
क्यूँ ढूँढता फिरता तू 
क़िस्मत अपनी हथेली में,
पाँव के टखने और 
तेरी जी तोड़ मेहनत,
से बढकर कुछ नहीं,
गर तू कर सकता मेहनत,
और लगन से अपने काम,
मान मेरा यकीन, भाग्य तो क्या,
हाथों की लकीरें भी बदलेंगी,
सिर्फ कर्म पथ को चुन,
तेरी लकीरें तो क्या 
सितारे भी चमकेंगे,
कर्म पथ पर चल।

रास्तों को जोड़, 
काँटों को तोड़,
आसमान को हम छूने चले हैं,
बदलने चले हैं ज़माने को,
हम आगे बढने चले हैं,
यारो इरादे नेक हों तो,
मंज़िलें क़दमों तक आती हैं,
चाहे कोई भी मुश्किलें आएँ,
ख़ामोशी से रास्ता छोड़ देती हैं,
ज़िंदगी हर मोड़ पर मारेगी डंडे,
पर तुम गाढ़ देना सफलता के झंडे।

सुनील माहेश्वरी - दिल्ली

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