मन में याद, याद में तुम हो - गीत - डॉ. कुमार विनोद

मन में याद, याद में तुम हो।
तुझ में  है सपने अन-गिन॥

आँगन में तुलसी का चौरा
और  नीम यूँ  झूम रही है
गिल्लू भागा दौड़ा फिरता
गौरैया कुछ चुंग रही है
बाबा की धोती गीलाकर
मुनुवा रोये हर पल - छिन
मन में याद, याद में तुम हो... अन-गिनI

याद तुम्हारी आए जब भी
पूनम के खिलते - खिलते
चकवा - चकवी की दूरी से
अधर नहीं खिलते - मिलते
रात कट गई आँखें फाड़े
और न कटता है यह दिन
मन में याद, याद में तुम हो... अन-गिन।

टहनी पर रोटी नहीं खिलते
जीवन इतना सरल नहीं
पानी ही हिम हो जाता है
हिम ही है पर तरल नहीं
संबंधों का यही रूप है
पर जीना है बहुत कठिन
मन में याद, याद में तुम हो... अन-गिनI

हल्दी दही का अंत : लेपन
पुलकित हो जाता है मन
रस्मों से भींगा संबंध है
जाने कब उठ गया शगुन
शोख ननद के गालों पर अब
उठता अछत है पल - द्दिन 
मन में याद, याद में तुम हो... अन-गिन।

पाणि ग्रहण के संस्कार में
हाथों से हाथों का तर्पण 
कितना कठिन है एक पिता को
क्षण भर में बेटी को अर्पण 
दुनिया की यह रीति यही है
पर कितना है क्षण मुश्किल
मन में याद, याद में तुम हो... अन-गिन।

डॉ. कुमार विनोद - बांसडीह, बलिया (उत्तर प्रदेश)

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