हौसलों की उड़ान - कविता - सुनील माहेश्वरी

हौसलो में जान हो,
तो फिर क्या जहान हो,
उम्मीदों में शान हो तो,
फिर क्या जहान हो,
दिल में हो सुकून तो,
फिर क्या जहान हो।
कहानी में हो करिश्मा
तो फिर क्या जहान हो,
भर लो एक बौनी उड़ान,
तब जीयो ज़िंदगी को,
फिर क्या जहान हो।
नए इरादों में बुनकर,
पहचान को ढूँढलो,
एक पहेली को फिर,
पहेली से बुन लो।
कर दो कुछ ऐसा यारो
जो इतिहास में हो,
एक दम नया,
कर सकने के ख़्वाब को,
कभी तो ज़िंदा रखो,
तब जीयो ज़िन्दगी,
फिर क्या जहान हो।

सुनील माहेश्वरी - दिल्ली

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