समय का पहिया - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी

हालात बयां न होंगे 
आई पूस की रात,
चूल्हा चकिया भी ठंडा 
कैसे कटेगी रात।

रोज़ सवेरे शाम वही 
लेता प्रभु का नाम,
फिर भी वक्त नही मानो 
अब मानवता के साथ।

खूब उजाले गुज़र गये 
बहुत अंधेरे हैं बाकी,
ये जीवन रसधार है 
नीरस अस्वादन बाकी।

हालात बयां जो न हुए 
क्या समझे तुम यार?,
ये जीवन एक बसंत है 
पतझड़ भी आया यार।

आज पूस रात जो 
कल सावन घर द्वार,
आज बयां जो न हुआ 
कल खूब बयां घर यार।

कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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