पल्लव गान - कविता - विनय 'विनम्र'

जिनके पल्लव कोमल सुन्दर,
वे नाच-नाच कर गान करें,
जिनको काँटे बस बिछे हुये,
वे रुककर कहीं विहान करें,

जिनके अधरों पर अमृत रस,
वे विचरण सहज जहान करें,
जिनके वचनों में विष बोझिल,
वे छिपकर कहीं वितान करें,

जिनकी दृष्टि में दोष नहीं,
वे सर्व धरा पर ध्यान धरें,
जिनकी नीयत में बाधा है,
वे थोडा गंगा स्नान करें,

जो वृक्ष सदा हैं हरे भरे,
पक्षी को थोडा छाँव करें,
जिनके पत्ते हैं सूख गये,
वे मरघट को प्रस्थान करें,

जिनके पदचापों में तप है,
पदचिह्न भरत के भाल धरें,
जिनके अभिमान भरे पग हैं,
वे मृत्यु लोक निर्वाण करें।।

विनय "विनम्र" - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)

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