मधुरिम मन के - कविता - प्रवीन "पथिक"

मधुर मधुर तुम, मधुरिम मन के!
आलंबन मेरे जीवन  के,
तुम्हें देख ही तृप्त हो जाते।
प्यासे  सपने  मेरे  नयन के...
अधर है तेरे रस के प्याले,
केश है बादल काले-काले,
तुम्हें  देख  यादों में आते।
ख़्वाब मेरे दीवाने-पन के...
कोमल सुर्ख कपोलों के दल,
पा  स्पर्श  मचाते  हलचल,
जी चाहे अंगों से लगा लूँ।
पूनम की छवि तेरे वदन के...
तेरे रूप की  दुनियाँ प्यासी,
तू क्यों बने किसी की दासी,
तेरे  बिन  फीके  पड़  जाते।
सारे सरस-सुमन उपवन के,
तिरछे  बंकिम  चंचल  नैन,
जिसको  देखे   लूटे   चैन,
फैली महक प्रेमरस भीने।
मानो  गंध  बहे  चंदन  के...
प्रेम "पथिक" मैं तेरा प्यासा,
तू  ही  मेरी  जीवन-आशा,
भौरें तेरी जुल्फ़ के बादल।
लाते झोकें मस्त पवन के।
मधुर मधुर तुम मधुरिम मन के....

प्रवीन "पथिक" - बलिया (उत्तर प्रदेश)

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