गणतंत्र दिवस - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा 'निकुंज'

गौरव   है   स्वाधीनता, पा   भारत    गणतंत्र।
त्याग शील पुरुषार्थ पर, न्याय प्रीति सच मंत्र।।१।।

किन्तु आज अवसाद मन, देखा देश विरोध।
सत्ता पद  धन लोभ में, बने  प्रगति अवरोध।।२।।

कोटि कोटि कुर्बानियाँ, भारत हुआ स्वतंत्र।
लूट  मची  है   देश  में, खतरे   में  गणतंत्र।।३।।   

बना वतन गणतंत्र अब, हुआ बहत्तर साल।
विकसित जन नेता हुए, जनता  है  बेहाल।।४।। 

सभी  दुहाई   दे  रहे, संविधान   दिन रात। 
जाति धर्म भाषा वतन, करे विरोधी  बात।।५।।

सदा पाक पर हो फ़िदा, कुछ नेता  हैं आज। 
किसी तरह सत्ता मिले, फिर लूटें मिल राज।।६।।  

रूहें  होंगी  रो  रहीं,  कुर्बानी      पे   आज।  
गोरों से  भी  विकट अब, देखे  देश समाज।।७।।   

हो समाज में समानता, मिले मूल अधिकार।
सरस   पिरोयी  बन्धुता, हो  भारत  आधार।।८।।

थी दुरूह स्वाधीनता, ले लाखों बलिदान। 
पराधीन  जंजीर  में, जकड़ा  हिन्दुस्तान।।९।।

सब जन हित सुख भाव हो, पूर्ण धरा परिवार।
सब  शिक्षित  हों  देश  में, जाग्रत हो  सरकार।।१०।। 

रक्षा करना है कठिन, विभीषणों से आज।
सभी स्वार्थ तल्लीन हैं, बाँट  रहे   समाज।।११।। 

सिसक रही  माँ भारती, देख लुटाई  देश।
कैसा यह गणतंत्र निज, देश द्रोह परिवेश।।१२।।

गाएँ मिलकर  साथ में, अमर  रहे गणतंत्र। 
तन मन धन अर्पित करें, भगा दूर षडयंत्र।।१३।।   

निर्भय शिक्षित बेटियाँ, मिले साम्य अधिकार।
तभी   देश   उत्थान  हो, बचे   सुता    संसार।।१४।।  

डॉ. राम कुमार झा 'निकुंज' - नई दिल्ली

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