ये दुनिया सारी है नश्वर - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"

ना तेरा  है  ना  मेरा  है यहाँँ ,
क्या ले के आया है मुसाफ़िर ?
धन-दौलत और  अट्टालिकाएं ,
ये  दुनिया  सारी  है  नश्वर ।


कल यह सब सिमट जाएगा ,
आज तू  जिस पर है निर्भर ।
जल की बूँद ज्यूँ बिखर जाएगा ,
विलासी जीवन का यह सफ़र ।


किस आस और किस गफ़लत में ,
आज जो तू बैठा है बेख़बर ।
तूने जुटाई सब चीजे क्षण-भंगुर,
आने वाले तेरे हालात है बदतर ।


तू  छोड़ के खाली हाथ चलेगा ,
सब कुछ धरा रहेगा यहीं पर ।
इस  हाड़-तोड़  की  मेहनत से ,
तेरा लटक जाएगा अस्थि-पंजर ।


अर्श से पर्श  पर आ जाएगा ,
जाने कब गिरे दुःखों का अंबर ।
ख़त्म हो जाए नश्वरता का खेल ,
लील जाए  प्रकृति  का क़हर ।


आओ अपनी सोच बदल डाले ,
धन-दौलत सब समझ  ले पत्थर ।
हर इंसान में  प्रेम बांट चले ,
ये  दुनिया  सारी  है  नश्वर ।


कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)


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