ना तेरा है ना मेरा है यहाँँ ,
क्या ले के आया है मुसाफ़िर ?
धन-दौलत और अट्टालिकाएं ,
ये दुनिया सारी है नश्वर ।
कल यह सब सिमट जाएगा ,
आज तू जिस पर है निर्भर ।
जल की बूँद ज्यूँ बिखर जाएगा ,
विलासी जीवन का यह सफ़र ।
किस आस और किस गफ़लत में ,
आज जो तू बैठा है बेख़बर ।
तूने जुटाई सब चीजे क्षण-भंगुर,
आने वाले तेरे हालात है बदतर ।
तू छोड़ के खाली हाथ चलेगा ,
सब कुछ धरा रहेगा यहीं पर ।
इस हाड़-तोड़ की मेहनत से ,
तेरा लटक जाएगा अस्थि-पंजर ।
अर्श से पर्श पर आ जाएगा ,
जाने कब गिरे दुःखों का अंबर ।
ख़त्म हो जाए नश्वरता का खेल ,
लील जाए प्रकृति का क़हर ।
आओ अपनी सोच बदल डाले ,
धन-दौलत सब समझ ले पत्थर ।
हर इंसान में प्रेम बांट चले ,
ये दुनिया सारी है नश्वर ।
कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)