जाड़ा - कविता - नूर फातिमा खातून "नूरी"

घना कोहरा, तापमान कम हो रहा है,
प्रचंड ठंड से आग भी बेदम हो रहा है।

सब जनजीवन  ठंड से बेहाल हैं,
बिस्तर में दुबके रहते नौनिहाल है।
गुदरा ओढ़कर कोई रात काट रहा,
देने वाला कहीं कम्बल बाँट रहा।

शीतलहर का भी सितम हो रहा है,
घना कोहरा, तापमान कम हो रहा है।

गाँव के लोग अलाव जलाने लगे हैं,
उसी में शकरकंद पकाने लगे हैं।
धुँआ करता रहता है खूब परेशान,
फिर भी नहीं छोड़ते आग की जान।

दोपहर की धूप खुदा का कर्म हो रहा है,
घना कोहरा, तापमान कम हो रहा है।

नूर फातिमा खातून "नूरी" - कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)

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