कभी खुदकुशी न करें - कहानी - शेखर कुमार रंजन

आज काया पता नहीं क्यों पर एकदम से बहुत ही टूटा हुआ दिख रहा था। पता नहीं किस बात से वह अगर मगर के भँवर में फँसा हुआ था क्या समस्या थी पता नहीं पर काया से आज बात करने पर पता चला कि काया को ये जिंदगी रास नहीं आ रही हैं और वो खुदकुशी करने का ख्याल अपने मन में बना रखा था यह बात सुनकर मैं चौक गया और सोचा हमेशा खुश रहने वाला काया को आखिर क्या हुआ कि ऐसा बेहूदगी ख़्याल उसके मन में आया। काया आखिर क्यों ऐसा सोच रहा है और उसे ज़िंदगी से क्या चाहिए मुझे पता नहीं और पता भी कैसे चले उसे तो हमेशा से ही खुश रहते हुए ही देखा था पर आज एक बात समझ में आ गया था कि हमेशा खुश रहने वाले काया जैसे इंसान के अंदर भी समुन्द्र जैसा बड़ा दर्द तकलीफ़ छुपा हुआ रहता हैं और होठों पर झूठी मुस्कान सजाएँ रहते हैं और लोग ऊपर की मुस्कान ही देख पातें है अंदर की दुःख, दर्द और तकलीफ़ नहीं देख पातें हैं।


काया की स्थिति से मै अब अवगत था और यहाँ काया अपने मन में बेहूदगी सोच वाली खुदकुशी की इच्छा बना रखा था, पता नहीं क्यों आज काया को ज़िंदा रहने से ज्यादा आसान मर जाना लग रहा था, मुझे ये समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर मैं क्या करूँ काया को खुदकुशी करने से कैसे रोकूँ। हालाँकि मैं काया को बचपन से ही जानता हूँ वह ग़रीबी में पला बढ़ा एक संवेदनशील इंसान हैं जिसके लिए अपने परिवार और कुछ दोस्तों की खुशी से बढ़ कर कुछ भी नहीं रहा है कभी भी। काया के पिताजी एक पढ़े लिखे मजदूर थे उनके परिवार से मेरा पुराना जान पहचान रहा है यहीं कारण है कि मैं उनके परिवार के प्रत्येक सदस्य के बारे में बहुत कुछ जानता हूँ। काया के पिताजी एक पढ़े लिखे इंसान थे जो किसी जमाने में शिक्षक हुआ करते थे किन्तु किसी कारण बस नौकरी छूट गई थी और यहीं कारण है कि वर्तमान में अब वे मज़दूरी करते हैं। हुआ ये की जब नौकरी छूटी तो परिवार का भरन पोषण करने का एक भी उपाय न रह गया था, तो मजबूरी में मज़दूरी के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं रह गया था। मैं काया के घर पर बहुत ज़्यादा समय बिताया करता था तो यहीं कारण था कि उसके हर उन स्थितियों से परिचित था जो काया मुझे बताया करता था लेकिन बहुत सी बात जो तकलीफ़ दे वो काया मुझसे छुपा भी लिया करता था। खैर अब समस्या मेरे पास यह थी कि मैं काया को खुदकुशी करने से कैसे बचाऊँ मैं घबरा गया था साथ में मुझे बहुत डर भी लग रहा था कि कहीं मैं अपना एक अच्छा दोस्त को खो न दू पर अब मैं उसके सोच को दूसरी ओर खींचने की कोशिश करने लगा और पुराने दिनों में उसके पिता द्वारा की गई कठिन परिश्रम को याद दिलाना शुरू कर दिया। मैंने काया से कहा  काया तुमसे मैं यह नहीं पूछूँगा की आखिर ऐसी क्या वजह है जो तुम अपने परिवार, दोस्त व इस खूबसूरत दुनिया को छोड़कर जाना चाहते हो पर मेरी बात सुनो फिर तुम्हें जो अच्छा लगे बेहिचक करना।


काया से मैंने पूछा क्या काया तुम वे दिन भूल गये की जब तुम सभी भाई छोटे थे और तुम्हारे पिताजी किस प्रकार मज़दूरी करने के बाद कुछ पैसा लाते थे जिससे भोजन का प्रबंध होतें थे और तुमलोग खाते थे और तब जाकर तुम्हारे शरीर का विकास हुआ है तुम इस बात को कैसे भूल सकते हो कि तुम्हारे पिताजी अपने शरीर को सिर्फ इसलिए कष्ट दिए हैं कि, ताकि तुम्हारे शरीर को कोई कष्ट न हो। तुम कैसे भूल सकते हो कि वे पचास किलोग्राम का सीमेंट का बोड़ा उठाकर गोदाम में रखते थे तब जाकर उन्हें पचास पैसे मिलते थे एक क्विंटल के चीनी वाले बोड़ा को उठाते थे तो एक रुपया मिलता था। असहाय तक़लीफ़ देने के बाद तब जाकर कुछ पैसे आतें थे और उन पैसों से जो अनाज आतें थे उसे खाकर आपके शरीर का निर्माण हुआ है और आप यू ही इस शरीर को समाप्त करना चाहते हैं। अपने पिता द्वारा की गई उन कष्टों को क्या यू ही भूला दोगे आप। इस शरीर को तकलीफ़ देने का आपको कोई हक नहीं है वर्षों के दिन रात के मेहनत के उपरांत आप इस प्रकार का शरीर पाये है और आप बिना सोचे समझे इसे किस अधिकार से समाप्त करने के बारे में सोच रहें हैं। कभी सोचे हो कि आपके माता पिता व परिवार पर क्या बितेगा जब आपके शव को अपनी बाँहो में रखेंगे। आप अपनी माँ के उन आँसुओ को कैसे भूल सकते हो जब आपके पिता को गाँव में काम नहीं मिलने पर शहर जाने के समय निकलती थी, आप इतने स्वार्थी कैसे हो सकते हो आज आपको थोड़ी तक़लीफ़ क्या हुई आप तो मरने की बात करने लगे पर कभी ये सोचे हो कि आपके माता पिता परिवार आप ज़िंदा रहें इसके लिए कितने जतन किये हैं अरे वे तो हर दर्द बस तुम्हारी खुशी के लिए हँसकर सह लिए वे तब तुम्हें सहारा दिए जब तुम्हें सहारे की ज़रूरत रही है आज जब उन्हें तुम्हारी सहारे की सबसे ज़्यादा ज़रूरत हैं तो तुम दर्द तक़लीफ़ के डर से यह दुनिया छोड़कर जाना चाहते हो आखिर तुम ऐसा कैसे कर सकते हो जिसके माता पिता इतना बहादुर हो उनका बेटा इतना भी कायर हो सकता है मुझे नहीं पता था। तुम्हें मरना है तो जाओ मर जाओ मैं तुम्हें नहीं रोकूँगा और दुनिया को भी शौक से बताऊँगा की मेरा एक दोस्त था जो बहुत ही कायर था जो थोड़ा दर्द तक़लीफ़ भी नहीं सह पाया और चोरी चुपके अपना बिना फ़र्ज़ निभाये ही चला गया। मेरा इतना कहने पर ही वो सुनते सुनते अचानक जोर जोर से रोने लगा और मुझे जोर से गले लगा लिया और कहने लगा दोस्त मुझे माफ़ कर दो मैं अब कभी भी ऐसा ख़्याल अपने दिल में नहीं आने दूँगा तब मुझे भी रोना आ गया और मन कर रहा था कि इसी तरह काया का सपोर्ट बना रहूँ।


शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)


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