जीवन संगिनी - कविता - पुनेश समदर्शी

बात तो तब हुई, जब वो मुस्कुराई।
उससे पहले तो मैं, डरा हुआ था।
बातों में अजीब सी, मधुरता थी उसके।
ऐसा मीठा संवाद, पहले किसी से हुआ न था।
एक ही मुलाकात में हो गई, मेरी वो अपनी।
ऐसा पहले, मैं किसी का हुआ न था।
फिर तो लग गया गले से मैं उसके, एक ही पल में।
उससे पहले तो, तनिक भी उसे छुआ न था।
मिली एक गर्मजोशी-सी, उसके स्पर्श से मुझे।
ऐसा आभास पहले कभी मुझे, हुआ न था।
आज वो जीवन संगिनी, अर्द्धांगिनी और प्रिया है मेरी।
अब तो एक भी दिन ऐसा नहीं, जिस दिन उसे छुआ न था।

पुनेश समदर्शी - मारहरा, एटा (उत्तर प्रदेश)

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