चाँद चकोर ज्यूँ ,
एकटक देखा करूँ ,
अपलक होकर ।
लुकछिप रहूँ ,
मैं सुबह शाम ,
आँखें बार-बार धोकर ।
माथे पर गोले-सी बिंदियाँ,
कजरारे नयन-तीर ,
वार से घायल होकर ।
गुलाब-सा हसीन चेहरा ,
बिजली-सी झलक पाऊँ ,
खिड़की जब खोलकर ।
तेरी मंद मुस्कान ,
गाल पर काला तिल ,
और नज़रों में उलझन हो ।
मोरनी-सी गर्दन ,
हिरनी-सी चलन ,
आँखों में अलहड़पन हो ।
नाज़ुक अंग-अदाओं से ,
प्यार-भरा इज़हार हो ,
मेरे रोम-रोम में झनझना हो ।
मैं तेरा और तूँ मेरी ,
एक प्रेम की दिवानगी हो ,
बस, यहीं मेरी तमन्ना है ।
कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)