प्रकृति - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

प्रकृति की भी अजब माया है
निःस्वार्थ बाँटती है
भेद नहीं करती है,
बस कभी कभी 
हमारी उदंडता पर
क्रोधित हो जाती है।
हर जीव जंतु पशु पक्षी के लिए
खाने, रहने और उसकी जरूरतों का
हरदम ख्याल रखती है
बिना किसी भेदभाव के
यथा समय  सबकुछ तो देती है,
हमें प्रेरित भी करती
सीख भी देती है,
कितना कुछ करती है,
क्या क्या सहती है
परंतु आज्ञाकारी प्रकृति
हमें देती ही जाती है,
हम ही नासमझ बने रहें
तो प्रकृति की क्या गल्ती है?
वो तो बस!
अपना संतुलन बनाए रखती है।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos