साहस - गीत - संजय राजभर "समित"

फैली धरती खुला गगन है, 
            जी-भर के उड़ान भर लो। 
 सब संभव है इस जीवन में 
            जो चाहो हासिल कर लो।।

खाली हाथ सभी हैं आते,
            अपना-अपना कर्म करें।
स्वेद बूँद की महिमा देखो, 
             रग-रग में है मर्म भरे।।

बनकर भाग्य विधाता खुद का, 
             पीर विकल मन के हर लो। 
 सब संभव है इस जीवन में 
              जो चाहो हासिल कर लो।।

धीरे -धीरे भी तो चलना, 
              बने रहना है संग में। 
थक कर बैठ गये जो पथ में, 
              आता कहाँ फिर रंग में?

कोई नही सगा-संबंधी, 
               जंग अकेला ही कर लो। 
 सब संभव है इस जीवन में 
               जो चाहो हासिल कर लो।।

कर्म योगी कहाँ है रुकते? 
               वह फल के इंतज़ार में।
सदियों तक दीपक की लौ सा, 
                जलते सदा संसार में।।
             
भरी खजाने से है दुनिया, 
                तुम लाओ झोली भर लो।
सब संभव है इस जीवन में 
                जो चाहो हासिल कर लो।।

संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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